Tuesday, March 29, 2011

उल्टा-पुल्टा / दीनदयाल शर्मा

उल्टा-पुल्टा
हो गया उल्टा-पुल्टा इक दिन
उड़ गया हाथी पंखों के बिन।
धरती से पाताल की ओर
बीच चौराहे घनी भीड़ में
भरी दुपहरी नाचा मोर।
 
बकरी ने दो दिए थे अंडे
बैठे थे शमशान में पंडे।
गूँगी औरत करती शोर
चूहों की दहाड़ सुनी तो
सिर के बल पर भागे चोर।
 
मुर्गा बोला म्याऊँ-म्याऊँ
बिल्ली बोली कुकड़ू कूँ।
बिना पतंग के उड़ गई डोर
निकले तारे धरती पर तो
छिप गया सूरज हो गई भोर।।

1 comment:

Sushil Bakliwal said...

यहाँ तो सभी कुछ उल्टा-पुल्टा चल रहा है ।

जीवन एक क्रिकेट !

तरुणाई की ये राह...?

Hindi Typing Tool