Sunday, May 30, 2010

ए ट्रिब्यूट माई स्टूडेण्ट : राजेश / जनकराज पारीक

ए ट्रिब्यूट माई स्टूडेण्ट : राजेश

-जनकराज पारीक-

श्रीगंगानगर जिले की तहसील श्रीकरणपुर कस्बे की बिल्कुल ताजा घटना है। वह रविवारकी एक निर्दयी शाम थी और मैं अपने बाएं हाथ में अपने ही दाएं हाथ की कटी हुई अंगुली लिए सड़कों पर लहूलुहान था। यह समय शायद डॉक्टर्स के घूमने-फिरने, खेलने या क्लब जाने का होता है, इसलिए किसी से सम्पर्क नहीं हो पाया। न जाने कौनसी सद्प्रेरणा से मेरे कदम उठे और मैंने अपने आपको बेनीवाल हॉस्पीटल श्रीकरणपुर के आगे खड़े पाया। सामने था गठीले बदन और मझौले कद काएक खूबसूरत नौजवान।
दूर से ही बोला, 'क्या कर लिया, सर?'
'अंगुली कट गई।'
'आओ जोड़ते हैं.......वैसे तो यह काम हड्डियों के डॉक्टर का है, फिर भी कोशिश करते हैं।' जैसे वह अपने आप से कह रहा हो, .......'जुड़ भी सकती है, काटनी भी पड़ सकती है। जुड़ी भी तो टेढ़ी-मेढ़ी ही जुडग़ी।'
'मुझे क्या फर्क पड़ता है। मैंने कहा और उसने एक घण्टे की मेहनत-मशक्कत के बाद टाँके लगा कर ड्रैसिंग कर दी। अंगुली के दोनों ओर गत्ते के टुकड़े लगा कर पक्के प्लास्टर जैसी मज़बूत स्थिति भी बना दी।
पट्टी खुली, तो मैंने विस्मित होकर कहा, 'राजेश, अंगुली तो जुड़ गई!'
'चमत्कार ही है, सर।'
'और जुड़ी भी एकदम सीधी है।'
'आपके सत्कर्मों का फल है, सर।' उसने ऐसे निर्लिप्त भाव से कहा, जैसे उसका कोई योगदान नहीं हो, कोई श्रेय नहीं हो। अभिभूत होकर मैंने कुछ रुपये उसकी जेब मे डालने का प्रयास किया, तो मेरा हाथ थामकर बोला, 'अब ये जुल्म मत करो, सर। मैंने तो अपने ही स्वार्थ के कारण आपकी अंगुली जोडऩे का यत्न किया था।'
'तुम्हारा स्वार्थ?'
'सर, आपके हाथ सलामत नहीं रहेंगे, तो हमारे बच्चों के कान कौन उमेठेगा?' उसने मुस्कराते हुए कहा और दूसरे मरीज़ों की ओर चला गया। न नाम की चाह, न पैसे का मोह, न प्रतिष्ठा की भूख। मुझे लगा, यही वे गिने-चुने लोग हैं, जिनके कारण आज भी यह दुनिया खूबसूरत और जीने लायक बनी हुई है। जाने कब वह समय आएगा, जब हमारे चारों ओर ऐसे ही लोभ, मोह और अहं विगलित निष्काम सेवाभावी प्राणवान व्यक्तित्व होंगे।

(श्री जनकराज पारीक जाने माने कथाकार, कवि एवं गीतकार हैं। आप राजस्थान साहित्य अकादमी की सरस्वती सभा के सदस्य रहे हैं। अनेक कृतियों के रचयिता और पुरस्कारों एवं सम्मान से नवाजे गए श्री पारीक जी की हिन्दी कहानी 'माटी भखै जिनावरां' विश्व की सौ सर्वश्रेष्ठ कहानियों के लिए चुनी गई है।

इनका पता है : 29, मंडी ब्लॉक, श्रीकरणपुर-335073, राज., मो : 09414452728)

'टाबर टोल़ी' अखबार के 1-15 मई, 2010 के अंक से साभार

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