सकारात्मक सोच से सफलता की ओर
अगर हम 'आम' और 'ख़ास' दो शब्दों पर गौर करें तो पाएंगे कि लगभग दोनों शब्द मात्राओं के हिसाब से समान हैं लेकिन अर्थ के हिसाब से दोनों ही अलग हैं क्योंकि आम से खास तक के सफर में कई बार पीढिय़ां गुज़र जाती हैं। हम में से ज्यादातर लोग यथास्थितिवाद के पक्षधर हैं- ना बदलाव, ना नई सोच, ना कोई नवाचार, ना नया सीखने की ललक। बस गुजर जाए किसी तरह एक दिन और- बिना किसी मशक्कत के, शांति के साथ सहूलियत के साथ।
हम नहीं करते हैं प्रयास अगुवाई और पहल के। करते हैं सिर्फ अनुसरण या सोचते हैं कि कोई और कर ही देगा, फिर करूंगा या मैं ही क्यों? समेट लेते हैं खुद को ओर यही संकुचन बना देता हैं हमें कूपमण्डूक। क्या सारी जि़न्दगी यूं ही बीत जाएगी औरों को बताते-बताते कि वह देखो, उसने बहुत बड़ी सफलता प्राप्त की है या वह संघर्षों से जूझकर भी हमसे आगे निकल गया या उसने यह किया, वह किया आदि-आदि? हम कब तक दूसरों का उदाहरण देते रहेंगे, स्वयं क्यों नहीं बन सकते हैं औरों के लिए मिसाल? क्यों ढकना चाहते हैं खुद को एक झूठे लबादे से और क्यों देना चाहते हैं अपने अहम को झूठी तसल्ली कि मैं कर तो लेता पर क्या करूं परिस्थितियां विपरीत थी या मैं ग्रामीण हूं या अब मेरी उम्र कहां या मेरी किस्मत खराब है या मेरे पास चेक-जेक नहीं हैं?
सार यही है कि हम थोपना चाहते हैं अपनी नाकामयाबी, अपने अनुसरण या पिछड़ेपन को दूसरों पर। हम में से अधिकांश दरअसल हताश, निस्तेज, नाखुश, निष्क्रिय, छिद्रान्वेषी, निराश, पलायनवादी और भाग्यवादी है।
दोस्तो, हमें एक बात अच्छे तरीके से समझ लेनी है कि सिर्फ एक 'ना' कामयाब आदमी को नाकामयाब बना देती है। अगर हम एक निश्चित ढर्रे पर जिन्दगी गुजारना नहीं चाहते हैं और सोचते हैं कि लोग हमारे लिए तालियां बजाएं तो जिन्दगी के हर क्षेत्र में घर, विद्यालय, समाज, प्रशासन आदि में हमें सकारात्मक नजरिया विकसित करना है और लगन व प्रयोगधर्मिता के साथ अनवरत प्रयास करने हैं। फिर सवाल ही पैदा नहीं होता है कि हम असफल हो जाएं।
एक कथा इस सन्दर्भ में उपयोगी है। एक गांव में एक भयानक राक्षस था जो गांव के बच्चों को डराता-धमकाता और परेशान करता था। एक दिन 17-18 साल का एक गड़रिया उस गांव से गुजर रहा था तो उसने सब कुछ देखकर गांव वालों से पूछा कि आप लोग इस राक्षस से लड़ते क्यों नहीं हो? गांव वालों ने जवाब दिया कि लड़ें कैसे, वह राक्षस तो इतना बड़ा है कि उसे मारा नहीं जा सकता है। तब गड़रिए ने कहा कि नहीं, ऐसी बात नहीं है कि वह इतना बड़ा है कि उसे मार नहीं सकते बल्किवह इतना बड़ा है कि उसे मारो तो चूक नहीं सकते। इतिहास गवाह है कि फिर डेविड नाम के उस गड़रिए ने गुलेल से ही गोलियथ नाम के उस राक्षस को मार डाला और वह ऐसा इसलिए कर पाया कि समस्या को देखने का उसका नज़रिया औरों से अलग और सकारात्मक था।
अब कुछ निराशावादी और पलायनवादी कह सकते हैं कि उपदेश देना सरल है मगर हकीकत में यह नामुमकिन है वगैरह-वगैरह, तो जवाब यह है कि सपने को हकीकत में न बदल पाना हमारी खुद की कमजोरी है। लगातार सही दिशा में किए गए प्रयास ही सफलता दिलाते हैं। एक बार एक गुरकुल में गुरु ने दस शिष्यों को बांस की टोकरी में एक-डेढ़ किमी दूर बह रही नदी से पानी लाने का आदेश दिया। सभी शिष्य नदी की ओर चल पड़े। चार शिष्यों ने कहा कि गुरुजी का दिमाग खराब हो गया है यह एक नामुमकिन काम है क्योंकि पानी बांस की टोकरी के छेदों में से झर जाएगा। वे वहीं आधे रास्ते बैठ गए और दूसरों को भी बैठने को कहा।
मगर छ: शिष्यों ने उनकी बात न मानकर नदी में से पानी भरा, मगर वही हुआ कि टोकरी ऊंची करते ही पानी झर गया। दस-बारह बार प्रयास करके दो को छोड़कर शेष चारों ने घोषणा कर दी कि यह काम असम्भव है, मेहनत करना व्यर्थ है। मगर उन दोनों ने हार नहीं मानी। वे बांस की टोकरी को नदी में डुबाते, मगर टोकरी ऊपर आते ही पानी झर जाता। लगातार दो घण्टे तक यही करते-करते एक निराश हो गया और बोला कि गुरुजी ने मजाक किया है, यह काम नहीं हो सकता है। मगर अन्तिम शिष्य ने हार नहीं मानी। उसे विश्वास था कि गुरुजी ने कुछ सोच-समझकर ही आदेश दिया है। वह अनथक लगा रहा।
शाम होने को आ गई। उसके बार-बार बांस की टोकरी में पानी भरने से बांस नमी पाकर फूलने लगे और छेद छोटे होते चले गए। अन्त में ऐसा भी वक्त आया कि उस टोकरी में पानी ठहर गया और शिष्य को विश्वास हो गया कि अब एक-डेढ़ किमी तक थोड़ा-बहुत पानी झरने के बाद भी वह कामयाब होकर गुरजी के पास लौटेगा।
तो दोस्तो यही है जज्बा, एक लगन व सकारात्मक दृष्टिकोण से किया गया प्रयास। आइए, संकल्प लेते हैं और कोशिश करते हैं अभी से सदा मुस्कुराकर, विनम्रता व जिज्ञासा से नया सीखने की और पाल लेते हैं एक ऐसा सपना जो नींद में नहीं आया हो, बल्कि हमें सच होने तक नींद न लेने दे।
जितेन्द्रकुमार सोनी, प्राध्यापक,
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय,
नेठराना, जिला : हनुमानगढ़
( जितेन्द्रकुमार सोनी, गत वर्ष आर.ए.एस.पुरुष वर्ग में टॉपर...और इस वर्ष आई. ए. एस. में 29वीं रैंक से चयनित...श्री सोनी को मेरी ओर से हार्दिक बधाई और मंगल कामनाएं... आप और अधिक उन्नति करें..और पूरी दुनिया में आपका नाम हो........................दीनदयाल शर्मा)
प्रेषक : दीनदयाल शर्मा,
मानद साहित्य संपादक,
टाबर टोल़ी, हनुमानगढ़ संगम, राज.