Tuesday, July 6, 2010

क्रांतिकारी मुनिश्री तरुणसागर : 
कड़वे प्रवचन

 किसी ने पूछा: गुरु क्यों जरूरी है? मैंने प्रति प्रश्र किया: मां क्यों जरूरी है? वे बोले- मां न हो तो हम संसार में नहीं आ सकते। मैंने कहा- गुरु न हो तो हम संसार से मुक्त नहीं हो सकते। गुरु का मतलब फैमिली डॉक्टर। गुरु मन की चिकित्सा करता है। शिष्य के लिए गुरु का द्वार किसी भी मंदिर या मस्जिद की चौखट से अधिक महत्वपूर्ण होता है। सागर तो बिना लहरों के हो सकता है, मगर लहरें बिना सागर के नहीं हो सकती। गुरु तो बिना शिष्य के हो सकता है, मगर शिष्य बिना गुरु के नहीं हो सकता।

दुनिया में जो बड़े पाप हो रहे हैं। उन्हें कौन कर रहा है? भूखे पेट का आदमी? नहीं। खाली पेट का आदमी तो पेट भरने जितना ही पाप करता है। लेकिन यह जो भरे पेट का आदमी है ना। वह पेटी और कोठी भरने जितने बड़े-बड़े पाप करता है। महावीर वाणी है- ईमानदारी से पेट भरा जा सकता है, पेटी और कोठी नहीं। समुद्र शुद्ध जल से कहां भरता है? तमाम गंदे नदी-नाले का जल जब समुद्र में गिरता है तब कहीं वह भरता है। याद रखना: आदमी पहले तो अमीर होने के लिए बड़े पाप करता है और फिर अमीर होकर अपनी अइयाशी पर पाप करता है। 

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