Thursday, April 7, 2011

बाळपणै री बातां / दीनदयाल शर्मा


बाळपणै री बातां

'बाळपणै री बातां' बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा री आपरी यादां री अेक लाम्बी जातरा है। अठै लेखक आपनै खुद नै पोथी रै केन्द्र में राखता थकां टाबरां रै जीवन री अबखायां अर बां'रै जीवन री मस्तियां रौ अेक सांगोपांग वर्णन कर्यौ है। माणस रौ बाळपणौ अर बाळपणै री बातां अर यादां बीं'रै जूण री सगळां संू अनमोल खजानौ हुवै। 

बाळपणै रा साथी-संगळियां नै माणस कदी नीं भूल सकै। लिखारा ईंयां लागै जियां बां' जद आ' पोथी मांडणी सरू करी, तद बै' खुद फेरूं अेकर जमां'ईं टाबर बणग्या हुवै। बाल मनोविग्यान री आपां तो बातां करां पण दीनदयाल शर्मा तो टाबरां रै बाल मनोविग्यान रा जादूगर है। बै' टाबर रै मन मांय ऊंडै तांईं देखण री कूंवत राखै। बां' कन्नै आपरै  बाळपणै री यादां रौ अेक पूरौ भंडार है। आ' बात इण पोथी मांय आच्छी तरियां सिद्ध होवै।

आजकाल रा मा-बाप आपरै टाबरां साथै ज्यादा बतळावण कोनी करै। अर टाबर मानसिक अवसाद रा शिकार हो'र बीमारियां संू घिरज्यै। अर बां' रै शरीर रौ भी विकास नीं होवै पण इण पोथी मांय आ' बात पाठकां रै दिल तांईं सीधी पहुंचै। लिखारा आपरै टाबरां साथै कियां घुळमिल'र रैवै अर बां'रै  साथै रोजिना बतळावण करै। अर आ' बतळावण ही बां' रै टाबरां मांय अेक नंूवै आत्मविसवास रौ विकास करै। 

लेखक आपरै बाळपणै री आज रै बाळपणै संू तुलना ईं पोथी मांय करी है। बीं' टेम पढाई बिना कोई मानसिक दवाब संू होंवती। टाबरां मांय बीं' टेम अेक बणावटी दौर कोनी हो। सगळा आपरी श्रद्धा सारू पढता अर घरआळा भी टाबरां ऊपर ज्यादा आपरी महत्वकांक्षा कोनी लादता। आ' बात आज रै अभिभावकां सारू ईं पोथी में अेक सोवणौ अर साफ-साफ संदेश है। 

दीनदयाल शर्मा टाबरां माथै पढाई रै बढतै बोझ माथै भौत चिन्त्या करता थकां कै'यौ है कै- आज टाबर री सावळ बढवार वास्तै बी'नै खेलणौ-घूमणौ भौत जरूरी है। नीं तो बौ' टाबर शरीर अर मन दोनां सूं कमजोर रै' ज्यासी। आज री पढाई व्यवस्था माथै चिंत्या दरसांवतां थकां लेखक ईं व्यवस्था मांय बदळाव करणै सारू जोर देवै। आज री व्यवस्था अक्षर ग्यान माथै जोर देवै अर लेखक टाबर नै व्यवहारिक ग्यान माथै जोर देवै। पोथी मांय 47 आलेख है जिका सरावण जोग है। 

भासा सरल अर सहज, छपाई अर कागज सोवणा, चितराम भी संस्मरण मुजब। पोथी पढणौ सरू कर्यां पाठक पूरी पढ'र ई छोडै। इणनै आखै देश में पाठकां रौ प्यार मिलसी। राजस्थानी भासा में टाबरां रै संस्मरण री स्यात आ' पैली पोथी है। म्हारी घणी-घणी शुभकामना अर बधाई।

पोथी - बाळपणै री बातां
लेखक - दीनदयाल शर्मा
विधा - बाल संस्मरण
पृष्ठ - 112
संस्करण - 2009
मोल - 200 रिपिया
प्रकाशक - टाबर टोल़ी
10 /22 आर.एच.बी.,
हनुमानगढ़ जं.-335512 
(राजस्थान)

- सतीश गोल्याण, मु.पो. जसाना, तहसील- नोहर, 
जिला-हनुमानगढ़, राज. मो. 9929230036

Wednesday, April 6, 2011

Deendayal Sharma' s Right Hand 1


Deendayal Sharma' s Right Hand.


Tuesday, March 29, 2011

उल्टा-पुल्टा / दीनदयाल शर्मा

उल्टा-पुल्टा
हो गया उल्टा-पुल्टा इक दिन
उड़ गया हाथी पंखों के बिन।
धरती से पाताल की ओर
बीच चौराहे घनी भीड़ में
भरी दुपहरी नाचा मोर।
 
बकरी ने दो दिए थे अंडे
बैठे थे शमशान में पंडे।
गूँगी औरत करती शोर
चूहों की दहाड़ सुनी तो
सिर के बल पर भागे चोर।
 
मुर्गा बोला म्याऊँ-म्याऊँ
बिल्ली बोली कुकड़ू कूँ।
बिना पतंग के उड़ गई डोर
निकले तारे धरती पर तो
छिप गया सूरज हो गई भोर।।

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