Monday, October 20, 2014
Monday, April 16, 2012
बाल मनोविज्ञान के चितेरे ...दीनदयाल शर्मा जी / डॉ॰ मोनिका शर्मा
आभार आपका मेरे ब्लॉग पर आकर मेरा मनोबल बढ़ाया । में एक शिक्षिका हूँ २५ वर्षों से में ग्रामीण क्षेत्र में कम कर रही हूँ साथ ही साथ प्रशासनिक पद पर रहते हुए संकुल प्रभारी भी कारन यही की मनोविज्ञान मेरा रूचि कर विषय है और मददगार भी । आपका आभार की आज आपने एक सार्थक पोस्ट से परिचय कराया ।
sangita
April 11, 2012 12:25 AM
हर शब्द बच्चों की कलात्मक अभिवृत्तियों, जिज्ञासाओं और संवेदनाओं को उकेरता सा लगता है ।
आलेख पढकर अच्छा लगा,सुंदर पोस्ट ....
बेहतरीन लाजबाब प्रस्तुति,....
RECENT POST...काव्यान्जलि ...: यदि मै तुमसे कहूँ.....
dheerendra
April 11, 2012 12:50 AM
दीनदयाल जी के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा |
जयकृष्ण राय तुषार
April 11, 2012 2:41 AM
बाल साहित्य लिखना ज्यादा क्लिस्ट है ... अच्छी जानकारी ॥
मेरे ब्लॉग पर आकर मेरा हौसला बढ़ाएं
babanpandey
April 11, 2012 6:26 AM
निश्चित रूप से बाल मनोविज्ञान को समझना मुश्किल होता है ....आपने के महत्वपूर्ण विषय पर लिखने वाले रचनाकार दीनदयाल जी से परिचय हमें करवाकर कृतार्थ कर दिया ...!
केवल राम :
April 11, 2012 7:20 AM
दीनदयाल जी के बारे में जानकारी के लिए धन्यवाद
काजल कुमार Kajal Kumar
April 11, 2012 7:27 AM
बाल-मन चित्रकार दीनदयाल जी के बारे में जानकर सुखद अनुभूति हुई।
बाल-साहित्य को समृद्ध करने के उनके समर्पण को प्रणाम!!
सुज्ञ
April 11, 2012 8:07 AM
बाल मन को समझना और उसे पल्लवित करना सर्वोत्तम भविष्य निधि है।
प्रवीण पाण्डेय
April 11, 2012 8:42 AM
सच कहा है बच्चों का मन पढ़ना और उनकी मानसिकता के आधार पे कुछ लिखना बहुत ही मुश्किल काम है ... सभी रचनाएं पढ़ के लगता है की बच्चे इनको कितना पसंद करेन्हे ... दीन दयाल जी के बारे में जानना बहुत अच्छा लगा ..
दिगम्बर नासवा
April 11, 2012 9:22 AM
वास्तव मे 'बचपन'ब्लाग काफी अच्छा है। माँ को श्रन्धांजली वाली उनकी कविता बेहद मार्मिक है और दूसरी रचनाएँ भी उत्तम हैं। दीन डायल शर्मा जी का परिचय देने हेतु धन्यवाद।
Vijai Mathur
April 11, 2012 9:28 AM
बच्चों के मन को लेकर चलनेवाले दीनदयाल जी के बारे में सविस्तार जानना बहुत अच्छा लगा
रश्मि प्रभा...
April 11, 2012 9:39 AM
बाल मन को समझ पाना और उनके अनुरुप लिखना सच में कठिन कार्य है..बाल साहित्यकारों को मेरा नमन है..
Maheshwari kaneri
April 11, 2012 10:06 AM
पढकर अच्छा लगा !
बहुत सुन्दर
Ayodhya Prasad
April 11, 2012 10:08 AM
बाल मन से सीधे जुड़तीं ,बाल जिज्ञासा ,बाल मनोजगत का खुलासा करती खूबसूरत रचना ,समीक्षा .बधाई .
veerubhai
April 11, 2012 10:13 AM
दीन दयाल जी से परिचय अच्छा लगा ....
संगीता स्वरुप ( गीत )
April 11, 2012 10:25 AM
आपने बिल्कुल सच कहा है ... दीन दयाल जी को आपकी कलम से जानना अच्छा लगा .. आभार ।
सदा
April 11, 2012 11:23 AM
दीन दयाल जी के बारे अच्छी जानकारी . बाल साहित्य लिखने के लिए बालक मन और समर्पण की जरुरत होती है .आभार आपका
ashish
April 11, 2012 12:02 PM
बाल मनोविज्ञान के चितेरे दीनदयाल शर्मा जी,
इनसे परिचय पाकर अच्छा लगा !
बढ़िया पोस्ट ....
Suman
April 11, 2012 12:22 PM
बहुत सुंदर जानकारी |
वर्ज्य नारी स्वर
April 11, 2012 12:46 PM
बाल साहित्य पर बहुत कम काम हुआ है। अच्छा ध्यानाकर्षण किया आपने। कुछ पुस्तकें ख़रीदना चाहूंगा।
कुमार राधारमण
April 11, 2012 1:14 PM
बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा जी के बारे में जान कर प्रसन्नता हुई...
Dr (Miss) Sharad Singh
April 11, 2012 1:33 PM
दीं दयाल जी के साहित्य की जानकारी अच्छी लगी. आभार.
shikha varshney
April 11, 2012 1:48 PM
दीनदयाल जी के बारे में इतनी अच्छी जानकारी के लिए आपका धन्यवाद ....
मदन शर्मा
April 11, 2012 1:52 PM
आपका आलेख पढकर अच्छा लगा, कभी समय मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी पधारें ...सुंदर पोस्ट ....
Shiv Kumar
April 11, 2012 2:46 PM
दीन दयाल जी के बारे में आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है!.....बच्चों की मानसिकता समझ कर ही उनके साथ व्यवहार करना चाहिए!...बहुत सुन्दर रचना...आभार!
डा. अरुणा कपूर.
April 11, 2012 2:59 PM
मैं भी दीनदयाल शर्मा जी का ब्लॉग पढ़ती हूँ...
बाल साहित्य मुझे बहुत पसंद आते हैं...
परिचय के लिए आभार!
ऋता शेखर मधु
April 11, 2012 3:09 PM
सुन्दर किताबे और रचनाएँ है दीनदयाल जी कि.....शुभकामनायें उनको....आपका आभार बाँटने के लिए ।
इमरान अंसारी
April 11, 2012 3:10 PM
Bahut Khoob
Arun Sharma
April 11, 2012 3:44 PM
बाल मन को समझने वाली उनकी सोच उनके लेखन में साफ़ झलकती है । तभी तो उनकी रचनाओं में बालमन की चंचलता भी है और सब कुछ जान लेने की उत्सुकता भी । '
डॉ मोनिका जी बहुत सुन्दर... भ्राता दीं दयाल शर्मा जी को तथा सुन्दर समीक्षा के लिए आप को भी ...बधाई
आइये बाल मन को और समझते चलें प्यार करें ..जय श्री राधे
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
Surendra shukla" Bhramar"5
April 11, 2012 3:51 PM
डॉ मोनिका जी बहुत सुन्दर... भ्राता दीन दयाल शर्मा जी को तथा सुन्दर समीक्षा के लिए आप को भी ...बधाई
आइये बाल मन को और समझते चलें प्यार करें ..जय श्री राधे
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण
Surendra shukla" Bhramar"5
April 11, 2012 3:52 PM
बाल साहित्य लिखना ज्यादा दुष्कर है..
बच्चों के मन को समझना पड़ता है...एक बहुत ही अच्छे साहित्यकार से परिचय करवाने के लिए शुक्रिया
rashmi ravija
April 11, 2012 4:45 PM
बाल मनोविज्ञान को जानना वास्तव में कठिन होता है शायद इसीलिए बच्चों के लिए फिल्मों और साहित्य की हमेशा कमी रही है.ऐसे में दीनदयाल जी जैसे कुछ लोग बच्चों के लिए जो कर रहे है उसका महत्तव स्वत: ही बढ जाता है.इनके बारे में जानकारी देने के लिए धन्यवाद!
राजन
April 11, 2012 6:03 PM
दीनदयाल जी की कविताओं से तो सचमुच लगता है वे बालमन के चतुर चितेरे हैं !
Arvind Mishra
April 11, 2012 6:12 PM
मोनिका जी सुन्दर परिचय ! एक दो बार दीनदयाल जी के ब्लॉग पर जा चूका हूँ ! बड़े ही सरल ढंग में बाल अनुभव को प्रस्तुत कर देते है !
G.N.SHAW
April 11, 2012 6:48 PM
मोनिका जी सुन्दर परिचय ! एक दो बार दीनदयाल जी के ब्लॉग पर जा चूका हूँ ! बड़े ही सरल ढंग में बाल अनुभव को प्रस्तुत कर देते है !
G.N.SHAW
April 11, 2012 6:48 PM
सचमुच बड़ा कठिन है बालमन को समझना... एक अलग ही दुनिया होती है उनकी छल -कपट, स्वार्थ से परे निराली सी... अच्छे साहित्यकार से परिचय करवाने के लिए आपका शुक्रिया...
संध्या शर्मा
April 11, 2012 10:27 PM
बाल मनोविज्ञान को समझना और उसके लिए कुछ लिखना आसान नहीं है। मैं तो नहीं लिख पाता।
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
मनोज कुमार
April 11, 2012 11:48 PM
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
Sushil Kumar Joshi
April 12, 2012 7:26 AM
दीनदयाल जी को कभी नहीं पढ़ा..अच्छा लगा आपसे जानना...बच्चों के लिए कवितायें लिखना आसान काम नहीं है...
abhi
April 12, 2012 7:46 AM
deendayal ji ko padhana bahut achha laga...abhar monika ji
Naveen Mani Tripathi
April 12, 2012 8:48 AM
आपकी पोस्ट चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
http://charchamanch.blogspot.in/2012/04/847.html
चर्चा - 847:चर्चाकार-दिलबाग विर्क
दिलबाग विर्क
April 12, 2012 11:51 AM
दीन दयाल शर्मा जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा आभार...हो सके तो उनकी रचनाओ को भी कभी पोस्ट कीजिएगा पाने ब्लॉग पर...
Pallavi
April 12, 2012 3:05 PM
parichay achha laga. aur lekhan bahut kuchh vyakti ke prakritik gunon par bhi nirbhar karta hai.
गिरधारी खंकरियाल
April 12, 2012 5:12 PM
यहाँ आकार आपके विचार पढ़ना हमेशा ही सुखद रहा हैं ....आभार
anju(anu) choudhary
April 12, 2012 7:51 PM
I've heard about him.. never got the chance to read his work..
hopefully I'll in time ahead !!
Jyoti Mishra
April 12, 2012 9:35 PM
सच! मुझे तो ऐसा लगता है खाशकर हिंदी में बच्चों के लिए बहुत कम लिखा जा रहा है.... और जो कुछ लिखा जा रहा है उसे प्रचार एवं प्रसार की आवश्यकता है.... आपने बच्चों के लिए बाल साहित्य लिखने वाले रचनाकार दीनदयाल जी से परिचय करवाया जिस हेतु आपका आभार..............!
सार्थक प्रस्तुति..........
पी.एस .भाकुनी
April 12, 2012 11:21 PM
वाकई बाल साहित्य लिखना मुश्किल कार्य है !!
दीनदयाल जी के परिचय का बहुत आभार !
वाणी गीत
April 13, 2012 7:24 AM
दीन दयाल जी से परिचय अच्छा लगा.
Kunwar Kusumesh
April 13, 2012 7:51 AM
Dindayal ji ke baare mein ek achha aalekh... badhayi aapko...
अभिषेक प्रसाद
April 13, 2012 10:26 AM
बच्चो के मनोविज्ञान को समझना सच में एक महा कठिन कार्य है! उनके दुनिया में सामिल होने के लिए अपनी सोच बाजु करके साथ होना बहुत ही मज़ेदार होता है. दीनदयाल जी के बारे में जानकारी के लिए धन्यवाद
Trupti Indraneel
April 13, 2012 12:35 PM
दींन दयाल जी,बड़े ही सरल ढंग में बाल अनुभव को प्रस्तुत कर देते है !...बेहतरीन पोस्ट .
मोनिका जी,..बहुत दिनो से आपका मेरे पोस्ट पर आना नही हुआ है,..जबकि मै नियमित आपके पोस्ट पर आता हूँ,...आइये स्वागत है
MY RECENT POST...काव्यान्जलि ...: आँसुओं की कीमत,....
dheerendra
April 13, 2012 12:58 PM
वाह! जी वाह! बहुत ख़ूब
कृपया इसे भी देखें-
उल्फ़त का असर देखेंगे!
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
April 13, 2012 2:42 PM
दीनदयाल जी के बारे में जानकार अच्छा लगा ...
शुभकामनायें
सतीश सक्सेना
April 13, 2012 4:33 PM
बधाई और धन्यवाद...दीनदयाल जी से परिचय करवाने के लिए....
Vaanbhatt
April 13, 2012 9:58 PM
एक अच्छे रचनाकर से परिचय कराती सुंदर पोस्ट ।
रजनीश तिवारी
April 13, 2012 10:48 PM
पापा मुझे बताओ बात
कैसे बनाते दिन और रात
और ढेर सी बातें मुझको
समझ क्यों नहीं आती हैं
न घर में बतलाता कोई
न मेडम बतलाती है
.बाल मन के मानसिक kuhaanse की सहज सरल अभिव्यक्ति .बालकों को कौतुक से भरती पहेली पूछती मेरी सहेली सी है ये कृति .
veerubhai
April 13, 2012 11:51 PM
बच्चों की कलात्मक अभिवृत्तियों, जिज्ञासाओं और संवेदनाओं को उकेरता बाल मन से सीधे जुड़तीं बाल जिज्ञासा बाल मनोजगत का खुलासा करती खूबसूरत रचना
दीनदयाल जी के बारे में जानकारी के लिए धन्यवाद
Ramakant Singh
April 14, 2012 12:20 AM
प्रिय मोनिका जी, दीनदयाल जी जैसे महान व्यक्ति से परिचय व उनके बारे में इतनी सुंदर व रोचक जानकारी देने हेतु आभार।मेरा तो यह मानना हो कि किसी भा लेखक अथवा कवि की नैसर्गिकता व उसकी अपने विधा में पूर्णता की कसौटी यही है कि वह बालमन की कल्पना व रचनात्मकता को कितना अपनी रचनाओं के माध्यम से प्रस्तुत कर सकता हैं। जब में यह जाना कि हठ कर बैठा चाँद एक दिन माता से यह बोला जोसी कविता रामधारी सिंह दिनकर जी ने लिखी है उस दिन यह बात मन में पूरी तरह स्पष्ट हो गयी कि एक पूर्ण व महान रचनाकार कौन होता है। पुनः सुंदर प्रस्तुति हेतु आभार व बधाई ।
Devendra Dutta Mishra
April 14, 2012 8:59 AM
sone ki parakh jauhri ko hi hota he.
अरूण साथी
April 14, 2012 10:17 AM
बहुत बेहतरीन....
मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
Shanti Garg
April 14, 2012 12:48 PM
बेहतरीन लाजबाब प्रस्तुति
sm
April 14, 2012 4:22 PM
दीनदयाल जी की बाल-कविताएं अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं।
बहुत सुंदर लिखते हैं वे।
mahendra verma
April 15, 2012 9:33 AM
आज 15/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गया हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
यशवन्त माथुर (Yashwant Mathur)
April 15, 2012 9:42 AM
बढ़िया परिचय देती सार्थक प्रस्तुति...
सादर आभार.
S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib')
April 15, 2012 6:04 PM
DEENDAYAL JI VASTAV ME BAL MAN KE PARKHI HAIN .SARTHAK PRASTUTI .AABHAR
LIKE THIS PAGE AND WISH INDIAN HOCKEY TEAM FOR LONDON OLYMPIC
शिखा कौशिक
April 15, 2012 8:17 PM
अति सुन्दर , कृपया इसका अवलोकन करें vijay9: आधे अधूरे सच के साथ .....
vijay singh
April 15, 2012 11:46 PM
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Thursday, April 7, 2011
बाळपणै री बातां / दीनदयाल शर्मा
बाळपणै री बातां
'बाळपणै री बातां' बाल साहित्यकार दीनदयाल शर्मा री आपरी यादां री अेक लाम्बी जातरा है। अठै लेखक आपनै खुद नै पोथी रै केन्द्र में राखता थकां टाबरां रै जीवन री अबखायां अर बां'रै जीवन री मस्तियां रौ अेक सांगोपांग वर्णन कर्यौ है। माणस रौ बाळपणौ अर बाळपणै री बातां अर यादां बीं'रै जूण री सगळां संू अनमोल खजानौ हुवै।
बाळपणै रा साथी-संगळियां नै माणस कदी नीं भूल सकै। लिखारा ईंयां लागै जियां बां' जद आ' पोथी मांडणी सरू करी, तद बै' खुद फेरूं अेकर जमां'ईं टाबर बणग्या हुवै। बाल मनोविग्यान री आपां तो बातां करां पण दीनदयाल शर्मा तो टाबरां रै बाल मनोविग्यान रा जादूगर है। बै' टाबर रै मन मांय ऊंडै तांईं देखण री कूंवत राखै। बां' कन्नै आपरै बाळपणै री यादां रौ अेक पूरौ भंडार है। आ' बात इण पोथी मांय आच्छी तरियां सिद्ध होवै।
आजकाल रा मा-बाप आपरै टाबरां साथै ज्यादा बतळावण कोनी करै। अर टाबर मानसिक अवसाद रा शिकार हो'र बीमारियां संू घिरज्यै। अर बां' रै शरीर रौ भी विकास नीं होवै पण इण पोथी मांय आ' बात पाठकां रै दिल तांईं सीधी पहुंचै। लिखारा आपरै टाबरां साथै कियां घुळमिल'र रैवै अर बां'रै साथै रोजिना बतळावण करै। अर आ' बतळावण ही बां' रै टाबरां मांय अेक नंूवै आत्मविसवास रौ विकास करै।
लेखक आपरै बाळपणै री आज रै बाळपणै संू तुलना ईं पोथी मांय करी है। बीं' टेम पढाई बिना कोई मानसिक दवाब संू होंवती। टाबरां मांय बीं' टेम अेक बणावटी दौर कोनी हो। सगळा आपरी श्रद्धा सारू पढता अर घरआळा भी टाबरां ऊपर ज्यादा आपरी महत्वकांक्षा कोनी लादता। आ' बात आज रै अभिभावकां सारू ईं पोथी में अेक सोवणौ अर साफ-साफ संदेश है।
दीनदयाल शर्मा टाबरां माथै पढाई रै बढतै बोझ माथै भौत चिन्त्या करता थकां कै'यौ है कै- आज टाबर री सावळ बढवार वास्तै बी'नै खेलणौ-घूमणौ भौत जरूरी है। नीं तो बौ' टाबर शरीर अर मन दोनां सूं कमजोर रै' ज्यासी। आज री पढाई व्यवस्था माथै चिंत्या दरसांवतां थकां लेखक ईं व्यवस्था मांय बदळाव करणै सारू जोर देवै। आज री व्यवस्था अक्षर ग्यान माथै जोर देवै अर लेखक टाबर नै व्यवहारिक ग्यान माथै जोर देवै। पोथी मांय 47 आलेख है जिका सरावण जोग है।
भासा सरल अर सहज, छपाई अर कागज सोवणा, चितराम भी संस्मरण मुजब। पोथी पढणौ सरू कर्यां पाठक पूरी पढ'र ई छोडै। इणनै आखै देश में पाठकां रौ प्यार मिलसी। राजस्थानी भासा में टाबरां रै संस्मरण री स्यात आ' पैली पोथी है। म्हारी घणी-घणी शुभकामना अर बधाई।
पोथी - बाळपणै री बातां
लेखक - दीनदयाल शर्मा
विधा - बाल संस्मरण
पृष्ठ - 112
संस्करण - 2009
मोल - 200 रिपिया
प्रकाशक - टाबर टोल़ी
10 /22 आर.एच.बी.,
हनुमानगढ़ जं.-335512
(राजस्थान)
- सतीश गोल्याण, मु.पो. जसाना, तहसील- नोहर,
जिला-हनुमानगढ़, राज. मो. 9929230036
Wednesday, April 6, 2011
Tuesday, March 29, 2011
उल्टा-पुल्टा / दीनदयाल शर्मा
उल्टा-पुल्टा
हो गया उल्टा-पुल्टा इक दिन
उड़ गया हाथी पंखों के बिन।
धरती से पाताल की ओर
बीच चौराहे घनी भीड़ में
भरी दुपहरी नाचा मोर।
उड़ गया हाथी पंखों के बिन।
धरती से पाताल की ओर
बीच चौराहे घनी भीड़ में
भरी दुपहरी नाचा मोर।
बकरी ने दो दिए थे अंडे
बैठे थे शमशान में पंडे।
गूँगी औरत करती शोर
चूहों की दहाड़ सुनी तो
सिर के बल पर भागे चोर।
बैठे थे शमशान में पंडे।
गूँगी औरत करती शोर
चूहों की दहाड़ सुनी तो
सिर के बल पर भागे चोर।
मुर्गा बोला म्याऊँ-म्याऊँ
बिल्ली बोली कुकड़ू कूँ।
बिना पतंग के उड़ गई डोर
निकले तारे धरती पर तो
छिप गया सूरज हो गई भोर।।
बिल्ली बोली कुकड़ू कूँ।
बिना पतंग के उड़ गई डोर
निकले तारे धरती पर तो
छिप गया सूरज हो गई भोर।।
Tuesday, October 26, 2010
महा पुरुषों के अनमोल विचार
महापुरुषों के अनमोल विचार
=अपनी भूल अपने ही हाथों से सुधर जाए तो यह इससे कहीं अच्छा है कि कोई दूसरा उसे सुधारे। - प्रेमचन्द
=गलती तो हर मनुष्य कर सकता है, किन्तु उस पर दृढ़ केवल मूर्ख ही होते हैं। -सिरसो
=अंधा वह नहीं जिसकी आँख फूट गई है, अंधा वह जो अपने दोष ढंकता है। -महात्मा गांधी
=जो जीना नहीं जानता है वह मरना कैसे जाने ? -महात्मा गांधी
=नम्रता का ढोंग नहीं चलता, न सादगी का। -महात्मा गांधी
=व्यक्ति दौलत से नहीं, ज्ञान से अमीर होता है।
=झूठ इन्सान को अंदर से खोखला बना देता है।
=संसार में सब से दयनीय कौन है? धनवान होकर भी जो कंजूस है। -विद्यापति
=हमारे भीतर कंजूसी न हो। -ऋग्वेद
कंगले की तरह जीना और धनवान हो कर मरना महज़ पागलपन है। - टामस मिड्लटन
=भय और खतरे ने मुझे कभी जिस के लिए संकल्पित और सहमत होने को बाध्य किया, भय और खतरे से
दूर होने पर मैं वही कर दिखाने के लिए कटिबद्ध हंू। -मौनतेन
=कंजूस के पास जितना होता है उतना ही वह उस के लिए तरसता है जो उस के पास नहीं होता।
=हम उतने खुश कभी नहीं होते, उतने दु:खी कभी नहीं होते, जितना अपने आपको समझ लेते हैं।
-ला रोशफूको
=कमाए बगैर धन का उपभोग करने की तरह ही खुशी दिए बगैर खुश रहने का अधिकार हमें नहीं है।
-जार्ज बरनार्ड शा
=उस खुशी से बच, जो कल तुझे काटे। -हरबर्ट
=खुशी कोई हँसने की बात नहीं है। -रिचर्ड ह्वेटली
=जीवन की सबसे बड़ी खुशी यह धारणा होती है कि लोग हमें चाहते हैं, हमारे लिए चाहते हैं-या कहें, हमारे होते हुए भी चाहते हैं, अंधे ऐसी ही धारणा रखते हैं। - विक्टर ह्यूगो
=लोगों की खुशी के लिए पहली जरूरत है धर्म का खात्मा। - कार्ल माक्र्स
Friday, September 24, 2010
कड़वे प्रवचन
महिलाओं में कई खूबियों के साथ एक खामी भी है। इनको कोई बात पचती नहीं है। स्त्रियों से कोई बात छिपती नहीं है। इसलिए कहते हैं जो बात पूरे गांव में फैलानी हो, किसी एक स्त्री को बता दो। बस फिर तुम चादर तान कर सो जाओ। जब तुम सोकर उठोगे तो बात पूरे गांव में फैल चुकी होगी। इस वूमन न्यूज चैनल का सामना आज तक भी आज तक नहीं कर पाया। हाँ, बात बताते वक्त इतना जरूर कह देना कि बहन, किसी और को मत बताना। निषेध में आकर्षण होता है, मन के लिए कोई भी निषेध निमंत्रण बन जाता है।
परायों के साथ जीना जितना आसान है, घर-परिवार के साथ जीना उतना ही मुश्किल है। घर में जीने का अर्थ केवल यह नहीं कि हम ईंट-पत्थर और चूने से बने मकान में जिएं। घर के साथ जीने की पहली शर्त है कि हम अपने भीतर आत्मीयता और सहज स्नेह का विस्तार करें। जिस घर में तीन पीढिय़ां एक साथ बैठकर भोजन और भजन करते हैं, वह घर धरती पर साक्षात् स्वर्ग है। आध्यात्म का प्रारम्भ धर्म से होता है, परन्तु धर्म का प्रारम्भ घर से होता है। और घर में घरवाली नहीं तो घर घर नहं, महज मकान होता है।
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