Saturday, June 5, 2010

सफ़दर हाशमी की कविता - किताब







किताबें

किताबें कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।


किताबें करती हैं बातें
बीते ज़मानों की
दुनिया की, इंसानों की
आज की, कल की
एक-एक पल की।
ख़ुशियों की, ग़मों की
फूलों की, बमों की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की।
क्या तुम नहीं सुनोगे
इन किताबों की बातें ?

किताबें कुछ कहना चाहती हैं।
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।
किताबों में चिड़िया चहचहाती हैं
किताबों में खेतियाँ लहलहाती हैं
किताबों में झरने गुनगुनाते हैं
परियों के किस्से सुनाते हैं
किताबों में राकेट का राज़ है
किताबों में साइंस की आवाज़ है
किताबों में कितना बड़ा संसार है
किताबों में ज्ञान की भरमार है।

क्या तुम इस संसार में
नहीं जाना चाहोगे?
किताबें कुछ कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं।
-सफदर हाशमी

1 comment:

राजेश चड्ढ़ा said...

डी डी भाई आज यहां आ कर अच्छा लगा और खास तॊर पर इस आलेख को पढ कर मेरी ये पंक्तियां.......................................................................... किताबें वक्त को उंगली पकड़ कर, सीढ़ियां चढ़ना सिखाती हैं।
सच तो ये है हर सदी में पीढ़ियों को, पीढ़ियां पढ़ना सिखाती हैं।।

Hindi Typing Tool